कायलाना एक कृत्रिम झील है जिसका उद्देश्य वर्षा के पानी को बांध बना कर एकत्रित करना था.मारवाड़ में वर्षा का जल अमूल्य था तथा इसके संरक्षण के पर्याप्त उपाय किये जाते थे.कायलाना और तखत सागर दो झीलें हैं तथा कायलाना का ओवर फ्लो तखत सागर में जाता है.पहले ये दोनों झीलें बरसात में लबालब भर जाती थी और गर्मी आते आते लगभग सूख जाती थीं.पर अब ऐसा नहीं है अब यह झील बारह महीने भरी रहती है.सतलज व्यास लिंक के द्वारा हरिके बेराज से लेकर लिफ्ट कैनाल से जोधपुर तक हिमालय का पानी पहुँचाने का काम राजस्थान में होता है.जोधपुर के आस पास के अनेक गांवों में भी पीने का पानी यहाँ से सप्लाई किया जाता है.इसके किनारे एक उपेक्षित सा बगीचा है.कुछ काम नहीं आने वाली नावें हैं.आसपास पहाडों पर आत्म हत्या नहीं करने बाबत स्लोगन लिखे हैं क्यों कि यहाँ हर वर्ष कुछ दुर्घटनाएं अवश्य होती हैं.पास में एक रास्ता बिजोलाई ,मचिया सफारी पार्क ,सिद्ध नाथ ,भीम भड़क जाता है जो सभी बड़े दर्शनीय स्थल हैं.चूँकि यह झील अपनी भराव क्षमता से ज्यादा भरी रहती है इसलिए शहर के पुराने मकानों में अंडर ग्राउंड में पानी का रिसाव होने लगा है और धीरे धीरे यह समस्या विकराल होने वाली है.शायद कोई हादसा हो और हम चेतें.
अहा , ग्राम्य जीवन भी क्या है ...?re simple than village life...
Some true stories about village life
जोधपुर के आसपास ग्राम्य जीवन की झलकियाँ
जोधपुर के आसपास ग्राम्य जीवन की झलकियाँ
मंगलवार, 10 नवंबर 2009
शनिवार, 7 नवंबर 2009
बडली का प्रसिद्ध भेरुंजी का मंदिर
जोधपुर-जैसलमेर नेशनल हाईवे पर जोधपुर से तेरह किलोमीटर कि दूरी पर एक गाँव है बडली.यह नाम वहां पर अति प्राचीन बड के वृक्ष के कारण पड़ा है.इसी वृक्ष के पास सात सौ साल पुराना भेरुंजी का मंदिर है.यह मंदिर शिहाजी द्वारा बनवाया गया था जिन्होंने राठोड वंश के राजपूतों को कन्नोज से लाकर मारवाड़ में बसाया था.अनेक जाति व संप्रदाय के लोग यहाँ पुत्र उत्पन्न होने पर जात-जडुले के लिए आते हैं.
भैरव का अर्थ होता है भय का हरण कर जगत का भरण करने वाला। ऐसा भी कहा जाता है कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है। भैरव शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं। हिंदू देवताओं में भैरव का बहुत ही महत्व है। इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है।
भैरव का अर्थ होता है भय का हरण कर जगत का भरण करने वाला। ऐसा भी कहा जाता है कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है। भैरव शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं। हिंदू देवताओं में भैरव का बहुत ही महत्व है। इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है।
यह भगवान का साहसिक युवा रूप है। उक्त रूप की आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय की प्राप्ति होती है। व्यक्ति में साहस का संचार होता है। सभी तरह के भय से मुक्ति मिलती है। काल भैरव को शंकर का रुद्रावतार माना जाता है। काल भैरव की आराधना के लिए मंत्र है- ।।ॐ भैरवाय नम:।। यहाँ अनेक महात्माओं ने तप किया है जिनकी अखंड ज्योत आज भी मंदिर में जलती रहती है.इस मंदिर में रविवार को दर्शनार्थियों का ताँता लगा रहता है.ऐसी मान्यता है कि भेरुं जी का प्रशाद घर नहीं ले जाया जाता मंदिर में ही बाँटना चाहिए.कुछ लोग भेरुं जी को मदिरा भी प्रशाद रूप में चढाते हैं.मंदिर के सामने एक पुरानी बावडी है जिसमें अब गन्दा पानी भरा है अगर इस इलाके पर ध्यान दिया जाय तो इसे रमणीक धार्मिक स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है. |
मंगलवार, 3 नवंबर 2009
मियानी का चमत्कारी शिव मंदिर
जोधपुर से सोजत के ग्रामीण बस सेवा मार्ग पर एक गाँव है मियानी जो मुख्यतया कुम्हारों का गाँव है .यहाँ एक शिव मंदिर है जो काफी प्रसिद्ध है.जाट जाति कि एक लड़की अन्य गाँव से ब्याह कर इस गाँव में आई .वो प्रतिदिन शिव जी को जल चढा कर ही भोजन करती थी परन्तु मियानी में कोई मंदिर नहीं था अतः उसने भोजन करने से इंकार कर दिया.सपने में पभु ने दर्शन दे कर कहा कि वो उसके खेत में मौजूद हैं जहाँ पूजा कर वह भोजन प्राप्त करे.वह लड़की खेत में घूमी जहाँ उसे शिवलिंग के दर्शन हुए .बड़ी धूमधाम से पूजा हुई और बाद में मंदिर का निर्माण करवाया गया.यहाँ श्रद्धा से पूजा अर्चना करने पर मनोकामना पूर्ण होती है.
मंगलवार, 27 अक्टूबर 2009
पुष्कर का पवित्र सरोवर
पुष्कर का पवित्र सरोवर अब इस हाल में है.पुष्कर का विश्व प्रसिद्ध पशु मेला शुरू हो चुका है और कार्तिक एकादशी से लेकर पूनम तक पवित्र सरोवर में डुबकी लगा कर पुण्य कमाने के लिए इन पांच दिनों में लगभग पांच लाख लोग पुष्कर पहुंचेंगे.लगभग ३५ हजार विदेशी भी राजस्थान की ग्रामीण संस्कृति की झलक देखने के लिए यहाँ पहुचेंगे.लेकिन इस महान पवित्र सरोवर की दुर्दशा आप देख रहें हैं.जन समूह को हिन्दू धर्म के आस्था के प्रतीक इस सरोवर में डुबकी लगाने के बजाय एक कृत्रिम टैंक में कृत्रिम रूप से भरे पानी में डुबकी लगा कर ही संतोष करना पड़ेगा.है ना अफ़सोस की बात.सरकार को तो इससे लेना देना ही क्या है.समय पर इसका desilting कराया होता ,गहरा करवाया होता ,घाटों पर बनी अवैध होटलों को हटाया होता ,आस पास की पहाडियों से वर्षा के पानी को सरोवर तक पहुँचने के मार्ग में हुए अतिक्रमण को हटाया होता ,तो शायद यह नौबत नहीं आती.
शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2009
कालबेलिया राजस्थान का एक प्रसिद्ध नृत्य
कालबेलिया राजस्थान कि एक प्रसिद्ध नृत्य शेली है.यह सपेरा जाति का नृत्य है.इसमें गजब का लोच और गति है जो दर्शक को सम्मोहित कर देता है.यह नृत्य दो महिलाओं द्वारा किया जाता है.ये बहुत घेरदार काला घाघरा पहनती हैं जिसपर कसीदा होता है कांच लगे होते हैं और इसी तरह का ओढ़ना और कांचली-कुर्ती होते हैं.राजस्थानी लोक गीतों पर ये फिरकनी कि तरह नाचती हैं तो देखने वाले के मुंह से वाह निकले बिना नहीं रहती.इस नृत्य की मशहूर कलाकार गुलाबो कई बार विदेशों में इस नृत्य को प्रस्तुत करके वाहवाही लूट चुकी हैं.संगीत के लिए बीन और डफ बजाया जाता है और लोक कलाकार और अपनी सुरीली आवाज में लोक गीतों का जादू बिखेरतें हैं.जब भी आप राजस्थान आयें इस नृत्य को देखना न भूलें.
मंगलवार, 20 अक्टूबर 2009
रशीदा में एक दिन गुजार कर तो देखिये
एक दिन गाँव के इस मकान में गुजार कर तो देखिये.बस जरा सी मुश्किलें हैं मसलन बिजली नहीं है यानि फ्रीज़ ,टी.वी.पंखा कुछ नहीं है शाम के बाद एक टिमटिमाता दिया है,खाने को बाजरे का सोगरा और कढी है ,पानी एक किलोमीटर दूर ट्यूब वेल से लाना पड़ेगा और शौच के लिए अल सुबह जंगल में जाना पड़ेगा पुरुष खुले में नहाएँगे महिलाओं के लिए दो दीवार खडी कर आड़ बनायीं गई है.शुद्ध हवा है ,ढूध दही छाछ है ,आत्मीयता है,अपनापन है.और आप जुड़ जाते हैं भारत कि उस सत्तर प्रतिशत जनता से जो इसी तरह कि सुविधा रहित जीवन शेली का अभ्यस्त है.यह रशीदा गाँव के एक मकान का चित्र है.जीवन कितना सरल है और हमने उसे कितना कठिन बना रखा है.
लेबल:
ग्रामीण जीवन,
जोधपुर,
रशीदा,
राजस्थान
शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2009
जोधपुर के आस पास वन्य जीव
जोधपुर के आसपास के छेत्रों में अनेक वन्य प्राणी स्वछंद विचरण करते हुए देखे जा सकते हैं.इनमे प्रमुख हैं हिरण,ब्लैक बक ,नील गाय,मोर,लोमडी ,खरगोश आदि.सुबह शाम हिरणों के झुंड के झुंड कुलाँचे भरते हुए नजर आयेंगे.इसी इलाके में सलमान खान शिकार प्रकरण हुआ है.यहाँ के लोग वन्य जीवों से छेड़ छाड़ पसंद नहीं करते हैं .बस दूर से निहारिए कैमरे में कैद कीजिये और आगे बढ़ जाइये किसी और दिलकश नज़ारे की तलाश में.मेरा व्यक्तिगत अनुभव है की अगर आप वास्तव में वन्य जीवों से प्रेम करते हैं तो आप को बहुत कुछ देखने को मिलेगा पर अगर आप वन्य जीवों के प्रति मन में हिंसा का भाव रखते हैं तो आपको निराश ही होना पड़ेगा.
रविवार, 11 अक्टूबर 2009
बिन पानी सब सून
राजस्थान के अधिकांश हिस्सों में बारिश नहीं होने से इस बार अकाल का सामना करना पड़ेगा.इसे दोहरा अकाल भी कहते हैं क्योंकि किसान कर्ज लेकर बुवाई कर चुके हैं.पीने का पानी सबसे बड़ी समस्या है ,तालाब सूखे पड़े हैं आदमी और मवेशी पानी कि तलाश में भटक रहे हैं (ऊपर का चित्र आशु मित्तल द्वारा ).राज्य सरकार कि नींद उड़ चुकी है और पेयजल योजनाओं पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है.वैसे भी इस सरकार को सूखे का काफी अनुभव है.केंद्र भी दया के नाम पर मदद तो करेगा ही.कुल मिला कर अगर आप जी नहीं सकते तो कम से कम आपको मरने भी नहीं दिया जायेगा.कोई बात नहीं हमारे मारवाड़ कि तो खासियत है पानी उन्डो है तो मिनक भी उन्डो है यानि चूँकि यहाँ पानी गहराई में मिलता है तो आदमी में भी सब्र का माद्दा ज्यादा है.
लेबल:
अकाल,
आशु मित्तल किसान,
कर्ज,
राजस्थान
शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2009
मारवाड़ की मशहूर और नायाब जूतियाँ
राजस्थान का मारवाड़ प्रदेश जोधपुर जैसलमेर पाली जालोर सिरोही बाड़मेर जिलों को मिला कर बना है.इस इलाके में ऊँठ बहुतायत से पाए जाते हैं इसलिए ऊँठ के चमड़े से कुटीर उद्योग पनपे और आज जोधपुर कि बनी जूतियों कि एक अलग पहचान है .मुलायम चमड़े पर खूबसूरत कसीदा जूतियों कि शान में चार चाँद लगा देता है.अस्सी रूपये से लेकर दो सौ रूपये तक में आप एक खूबसूरत जोड़ा खरीद सकते हैं.काकेलाव गाँव के चौराहे पर कोने में नीम के पेड़ के नीचे बैठा शंकरजी मोची कई पीढी से यही काम कर रहा है.दाल रोटी मिल जाती है.लेकिन भौतिक वाद के इस युग में दाल रोटी से कौन खुश है.वो चाहता है कि उसके बच्चे पढ़ लिख कर कोई और काम धंधा करें जिसकी समाज में इज्जत हो .
बुधवार, 7 अक्टूबर 2009
सुरम्य व मनोरम धार्मिक स्थल - बूढा पुष्कर
गुरुवार, 1 अक्टूबर 2009
92 वर्षीय विधवा बग्तु देवी को मिली पेंशन
जोधपुर संभाग के सिरोही जिले में कालिंद्री के जरा आगे चारण बाहुल्य गाँव है पेशवा .यहाँ की ९२ वर्षीय विधवा बग्तु बाई पिछले ६५ वर्षों से अपने पेंशन के अधिकार के लिए लड़ रही थीं.इनके पति राजकीय सेवा में अध्यापक थे और १५ वर्ष तक निष्टा और लगन से बच्चों को पढाया.उसके बाद टी.बी.जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हो अल्पायु में चल बसे.बग्तु बाई पर परिवार का बोझ आन गिरा परन्तु एक आस थी पति राज्य कर्मचारी थे पेंशन तो मिलेगी ही.स्कूल से लेकर जिला शिक्षा अधिकारी तक अनेक बार हाथ फेलाए ,उच्चतम अधिकारीयों तक भी चिट्ठी पत्री लिखी पर कुछ हासिल नहीं हुआ.मानवाधिकार आयोग में प्रार्थना पत्र दिया ,नोटिस प्रमुख शासन सचिव वित्त विभाग Shri C.K.Mathew (चित्र बाएं ) को मिला परन्तु एक संवेदनशील अधिकारी होने के नाते उन्होंने इसे गंभीरता से लिया.सभी सम्बंधित अधिकारीयों की जयपुर सचिवालय में मीटिंग रखी गयी. ज्ञात हुआ की बग्तु देवी के पति द्वारा प्रदत्त सेवाओं का अभिलेख नहीं है पुनः शिक्षा विभाग के अधिकारीयों को निर्देश दिए की रिकोर्ड की गहराई से छानबीन की जाय.
अंततः कुछ रिकॉर्ड मिला और कुछ Mathew साहब ने सहयोगी अधिकारीयों की सलाह पर अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए बग्तु देवी के पति के सेवा काल को पेंशन योग्य मानते हुए पारिवारिक पेंशन दिए जाने का निर्णय लिया.सम्बंधित अधिकारीयों को स्वयं बग्तु देवी के गाँव जाकर पेंशन भुगतान के आदेश दिए.जिससे किसी बिचोलिये के हाथों राशी का दुरूपयोग न हो.जब करीब चार लाख की राशी का चेक बग्तु देवी के हाथों में दिया गया तो उनकी आँखों में ख़ुशी के आंसू थे.
अंततः कुछ रिकॉर्ड मिला और कुछ Mathew साहब ने सहयोगी अधिकारीयों की सलाह पर अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए बग्तु देवी के पति के सेवा काल को पेंशन योग्य मानते हुए पारिवारिक पेंशन दिए जाने का निर्णय लिया.सम्बंधित अधिकारीयों को स्वयं बग्तु देवी के गाँव जाकर पेंशन भुगतान के आदेश दिए.जिससे किसी बिचोलिये के हाथों राशी का दुरूपयोग न हो.जब करीब चार लाख की राशी का चेक बग्तु देवी के हाथों में दिया गया तो उनकी आँखों में ख़ुशी के आंसू थे.
रविवार, 27 सितंबर 2009
मथानिया की लाल मिर्च
मथानिया की लाल मिर्च अपने रंग और स्वाद के लिए इतनी मशहूर हुई की मेक्सिको के कृषि वैज्ञानिकों का एक दल मथानिया अनुसन्धान के लिए आया और मेक्सिको मैं इसकी बड़े पैमाने पर खेती करने की सम्भावना पर शोध की.
बाजार मैं मिलने वाली हरी मिर्च को ही लाल होने तक पोधे पर पकने दिया जाता है.फिर इसे तोड़ कर सुखा लिया जाता है. मसाला पीसने की मशीन पर पीस लिया जाता है.इस लाल मिर्च के रंग व स्वाद का कोई मुकाबला नहीं है.आजकल मसालों में मिलावट की वजह से सब्जियों का स्वाद घटता जा रहा है वहीँ मथानिया की लाल मिर्च अपने मौलिक रूप में मौजूद है.बाजार में यह १२० रूपये प्रति किलो के भाव से बिकती है.मथानिया जोधपुर से ४० किलोमीटर दूर है . हम अपने परिवार एवं इष्ट मित्रों के लिए वहीँ से साल भर की जरुरत की मात्र खरीदते हैं.
बाजार मैं मिलने वाली हरी मिर्च को ही लाल होने तक पोधे पर पकने दिया जाता है.फिर इसे तोड़ कर सुखा लिया जाता है. मसाला पीसने की मशीन पर पीस लिया जाता है.इस लाल मिर्च के रंग व स्वाद का कोई मुकाबला नहीं है.आजकल मसालों में मिलावट की वजह से सब्जियों का स्वाद घटता जा रहा है वहीँ मथानिया की लाल मिर्च अपने मौलिक रूप में मौजूद है.बाजार में यह १२० रूपये प्रति किलो के भाव से बिकती है.मथानिया जोधपुर से ४० किलोमीटर दूर है . हम अपने परिवार एवं इष्ट मित्रों के लिए वहीँ से साल भर की जरुरत की मात्र खरीदते हैं.
गुरुवार, 24 सितंबर 2009
अफीम वाला बाबा
जोधपुर से मात्र १७ किलो मीटर दूर जब आप नागौर रोड पर जा रहे होते हैं तो एक रेलवे फाटक आता है यहीं दाहिने हाथ पर डा.नारायण सिंह मानेकलाव द्वारा स्थापित अफीम नशा मुक्ति केंद्र है.मेरा परिवार जर्मनी से आई एक २१ वर्षीय अतिथि पर्यटक बन्ते को लेकर मानेकलाव पहुंचा.यह महिला प्रचलित पर्यटक स्थलों को देखने में रूचि नहीं रखती थी.मानेकलाव में उस समय २५ अफीम की लत से ग्रस्त अपना इलाज करवा रहे थे.लगभग सभी युवा थे.उन में से कुछ तो अन्य प्रदेशों से आये थे.हमने डाक्टरों व् मरीजों से काफी देर बात की.सभी इलाज से संतुष्ट थे.इलाज लगभग तीन माह चलता है इस दौरान रोगी को वहीँ रहना पड़ता है.बहुत मामूली खर्च में यह इलाज हो जाता है.केंद्र के नियम कानून जरूर कड़े हैं जिसके बिना इलाज संभव भी नहीं हैं. ऊपर वाले चित्र में मैं बन्ते के लिए दुभाषिये का काम कर रहा हूँ .बन्ते ने अनेक प्रश्न रोगियों से पूछे लत कैसे लगी ,पैसे कहाँ से आते थे ,अफीम कहाँ मिलती थी ,परिवार की जानकारी आदि आदि .एक समाज शास्त्री की तरह उसने पूरा विवेचन किया.सच पूंछो तो मुझे भी पहली बार इस व्यसन की इतनी विस्तृत जानकारी मिली.डा.नारायण सिंह पदम श्री व पदमविभूषण से सम्मानित हैं व राज्य सभा के सदस्य भी रह चुके हैं. लोग सम्मान से इन्हें अफीम वाला बाबा कहते हैं.
बुधवार, 23 सितंबर 2009
रोहट का दुर्ग
रोहट का दुर्ग जोधपुर से मात्र ३० किलो मीटर जोधपुर पाली मार्ग पर है.यह एक छोटा गाँव है जो तेजी से फैलते जोधपुर की चपेट मैं शीध्र आने वाला है.दुर्ग के प्राचीर से सूर्यास्त का नज़ारा अदभुत है.यह दुर्ग एक हेरिटेज होटल है .विलियम डेरीयम्पल ने यहीं रह कर अपनी पुस्तक "सिटी ऑफ़ जिन्नस "की रचना की थी.मेडोना को भी यह जगह बहुत पसंद है.
लेबल:
.विलियम डेरीयम्पल,
"सिटी ऑफ़ जिन्नस ",
जोधपुर,
मेडोना,
रोहट,
हेरिटेज होटल
सोमवार, 21 सितंबर 2009
सालावास का दरी उद्योग
जोधपुर के आस पास अनेक गाँव मैं दरी बुनने का काम बड़े पैमाने पर होता है.अधिकांशत: यह काम मेघवाल जाती के लोंगो द्वारा किया जाता है.यह दरी इंडियन कारपेट के रूप मैं निर्यात की जाती है.मैं इस उद्योग से बहुत प्रभावित हुआ .यहाँ तक की कें विकिपीडिया पर एक वेब पेज भी बना डाला.
http://en.wikipedia.org/wiki/Dhurrie
यह ग्रामीण छेत्रों मैं रोजगार का अच्छा साधन है यह वो कुटीर उद्योग है जो शायद गांधीजी के सपनों का भारत बनाता है.अगर आप कभी जोधपुर की तरफ घूमने आएं तो यादगार के लिए एक दरी खरीदना मत भूलियेगा.
http://en.wikipedia.org/wiki/Dhurrie
यह ग्रामीण छेत्रों मैं रोजगार का अच्छा साधन है यह वो कुटीर उद्योग है जो शायद गांधीजी के सपनों का भारत बनाता है.अगर आप कभी जोधपुर की तरफ घूमने आएं तो यादगार के लिए एक दरी खरीदना मत भूलियेगा.
शनिवार, 19 सितंबर 2009
माया की माया से बातचीत
माया की माया से बातचीत मेरे जीवन का अनोखा अनुभव था.एक माया न्यूयार्क से आई हैं और दूसरी ने अपने गाँव से बाहर कदम नहीं रखा.एक को सिर्फ अंग्रेजी आती है दूसरी को सिर्फ मारवाडी.हाँ,एक समानता जरूर है दोनों को धुम्रपान का शौक है.दोनों अपनी अपनी भाषा में बोलती रही और इशारों इशारों में सारी बात हो गयी.सारे संसार में नारी की पीडा एक जैसी है ,समझोता करने वाली और न करने वाली एक दूसरे का दुःख दर्द अच्छे से समझती हैं.मैं तो इनकी ट्यूनिग से विस्मित था की दुभाषिये का रोल भी अदा नहीं कर सका.में ऐसा करके उनके वार्तालाप में व्यवधान भी नहीं करना चाहता था.
गुरुवार, 17 सितंबर 2009
दादा भगवान का तिंवरी धाम
दादा भगवान का तिंवरी धाम जोधपुर से लगभग पचास किलोमीटर ओसियां रोड पर है.एक बहुत बड़े और सुंदर बगीचे में मंदिर व ध्यान केंद्र बना हुआ है.यह जोधपुर व राजस्थान के अनेक शहरों में बने शोपिंग मॉल के मालिक ललित जी ने बनवाया है.यह आध्यात्मिक गतिविधियों का केंद्र है.ललितजी दादा भगवान के परम भक्त हैं.
दादा भगवान एक आध्यात्मिक गुरु हैं जो 1958 में ज्ञानी पुरुष भगवान श्री ए .एम्.पटेल के रूप में अवतरित हुए.इन्होने आत्म ज्ञान का सरल मार्ग बताया जिसे अकर्म विज्ञान कहते हैं.यह self-realisation का शोर्ट कट है.
बगीचे में जगह जगह दादा भगवान के उपदेश अंकित हैं.यह एक बहुत ही सुंदर स्थल है जहाँ मन को शांति मिलती है.
दादा भगवान एक आध्यात्मिक गुरु हैं जो 1958 में ज्ञानी पुरुष भगवान श्री ए .एम्.पटेल के रूप में अवतरित हुए.इन्होने आत्म ज्ञान का सरल मार्ग बताया जिसे अकर्म विज्ञान कहते हैं.यह self-realisation का शोर्ट कट है.
बगीचे में जगह जगह दादा भगवान के उपदेश अंकित हैं.यह एक बहुत ही सुंदर स्थल है जहाँ मन को शांति मिलती है.
लेबल:
जोधपुर,
तिंवरी धाम,
दादा भगवान,
ललित
मंगलवार, 15 सितंबर 2009
पत्थर के शिल्पकार
जोधपुर के नजदीक ही कुछ गाँव में शिल्पकार पत्थर की मुर्तियाँ घड़ने का काम करते हैं.इसकी मांग बड़े शहरों के अलावा विदेशों में भी है.जोधपुर में गुलाबी रंग का पत्थर बहुतायत से पाया जाता है जिसे छित्तर कहते हैं,जोधपुर का राजमहल जिसका नाम उम्मेद भवन पैलेस है वह भी इसी पत्थर से बना हुआ है.आने वाले समय में इसकी पहचान बन सकती है और यह अकाल की विभीषिका झेल रहे मारवाड़ के श्रमिकों के लिए रोजगार का वैकल्पिक साधन बन सकता है,
इसके अलावा छतरियां,बुर्ज ,जाली.नक्काशीदार झरोखे बनाने के लिए घोटारु नामक पत्थर काम में लाया जाता है.इस पत्थर पर नक्काशी करना आसान होता है.जैसलमेर के पीले पत्थर पर कि गई नक्काशी बेहद खूबसरत लगती है .जैसलमेर में बनी पटवों कि हवेली विश्व प्रसिद्ध है.
शनिवार, 12 सितंबर 2009
वाह क्या मनवार है
राजस्थान के अनेक गाँव में आज भी अफीम की मनवार का प्रचलन है.वैसे तो अफीम की खेती सरकारी नियंत्रण में चित्तोड़ एवं उसके आसपास के जिलों में होती है,पर यह हर जगह सहजता से उपलब्ध है.पॉपी के फूलों को चीरा लगा कर जो रस निकला जाता है उसका संग्रहण कर लिया जाता है.इसे अफीम का दूध भी कहते हैं.यह दवाइयाँ बनाने के काम आता है.शुद्ध अवस्था में सेवन से काफी नशा हो सकता है.इसमें ९०% शक्कर मिला कर पतली बट्टी बना ली जाती है.आम तौर पर इसका प्रयोग किया जाता है.इसे सेवन के लिए पानी मिला कर और भी विरल किया जाता है.इसके लिए चित्र में दर्शाए अनुसार एक यन्त्र काम में लिया जाता है.यहाँ एक विदेशी बालिका को मैं अफीम को विरल करने व सेवन करने की विधि समझा रहा हूँ.जब कई बार फिल्टर होकर यह उपभोग के लिए तैयार होती है तब मेजबान अपने हाथों से इसे मेहमान को चुल्लू बना कर पिलाता है.
शुक्रवार, 11 सितंबर 2009
पंचकुटा राजस्थान में प्रचलित एक सब्जी
पंचकुटा राजस्थान में प्रचलित एक प्रमुख खाद्य है .वास्तव में यह राजस्थान में पाई जाने वाली पॉँच वनस्पतियों से बनाई गयी एक सब्जी है.यह वनस्पतियाँ निम्न हैं १.कैर २.कुमटिया ३.सांगरी ४.गोंदा ५.साबुत लाल मिर्च राजस्थान की जलवायु के अनुसार यहाँ रेगिस्तान में पाई जाने वाली प्रजातियों से बनाई गई इस सब्जी को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है .बड़ी बड़ी पंच सितारा होटलों में इसे परोसा जाता है. विधि :-उपरोक्त पांचो सब्जियां बाजार में सूखी मिलती हैं ,अगर आप चाहें तो मौसम में जब इसका फल वृक्षों पर लगता है आप किसी भी खेत में से इसे तोड़ कर घर पर सुखा सकते हैं.पहले इसे रात भर पानी में भिगो दिया जाता है और सुबह अच्छे तेल मसाले में छोंक लिया जाता है.यह सब्जी काफी दिन तक ख़राब भी नहीं होती.
इन वनस्पतियों का विवरण निम्नानुसार है
कैर
यह छोटे बेर की आकृति का फल है जो हरा ही पेड़ से तोड़ कर सुखा लिया जाता है.यह कांटेदार छोटी झाडी पर उगता है जिसका नाम केपेरिस डेसिदुआ है.यह जंगलों में बहुतायत से पाया जाता है.
सांगरी
इसका पेड़ काफी बड़ा होता है और इसकी लम्बी फलियाँ होती हैं.इसका नाम प्रोसोपिस सिनरेरिया है जिसे हिंदी में खेजडी कहते हैं. इस पेड़ का रेगिस्तानी इलाके में बहुत महत्व है.इसकी फलियों को तोड़ कर सुखा लिया जाता है जिसे सांगरी कहते हैं.
.कुमटिया
यह अकेसिया सेनेगल नामक पेड़ की फलियों के बीज होते हैं .इसका पेड़ भी जंगलों में बहुतायत से पाया जाता है.
गोंदा
इसका पेड़ काफी बड़ा होता है तथा एक ही पेड़ पर यह प्रचुर मात्र में लगते हैं,इनका आकार छोटी कांच की गोली जितना होता है .इसका आचार बहुत स्वादिष्ट होता है.इसका नाम कोर्डिया मिक्सा है.
लाल मिर्च
हरी मिर्च को तोड़ कर सुखा लिया जाता है तथा चटनी आदि के लिए काम में लिया जाता है.
इन वनस्पतियों का विवरण निम्नानुसार है
कैर
यह छोटे बेर की आकृति का फल है जो हरा ही पेड़ से तोड़ कर सुखा लिया जाता है.यह कांटेदार छोटी झाडी पर उगता है जिसका नाम केपेरिस डेसिदुआ है.यह जंगलों में बहुतायत से पाया जाता है.
सांगरी
इसका पेड़ काफी बड़ा होता है और इसकी लम्बी फलियाँ होती हैं.इसका नाम प्रोसोपिस सिनरेरिया है जिसे हिंदी में खेजडी कहते हैं. इस पेड़ का रेगिस्तानी इलाके में बहुत महत्व है.इसकी फलियों को तोड़ कर सुखा लिया जाता है जिसे सांगरी कहते हैं.
.कुमटिया
यह अकेसिया सेनेगल नामक पेड़ की फलियों के बीज होते हैं .इसका पेड़ भी जंगलों में बहुतायत से पाया जाता है.
गोंदा
इसका पेड़ काफी बड़ा होता है तथा एक ही पेड़ पर यह प्रचुर मात्र में लगते हैं,इनका आकार छोटी कांच की गोली जितना होता है .इसका आचार बहुत स्वादिष्ट होता है.इसका नाम कोर्डिया मिक्सा है.
लाल मिर्च
हरी मिर्च को तोड़ कर सुखा लिया जाता है तथा चटनी आदि के लिए काम में लिया जाता है.
सोमवार, 7 सितंबर 2009
पागल ब्राह्मण की दास्तान
जोधपुर के नजदीक के गांवों का भ्रमण करते समय एक गाँव में एक ब्राह्मण परिवार ने मुझे चाय पर आमंत्रित किया.बहुत सज्जन परिवार था.परिवार कि जानकारी लेते समय वृद्धा ने बताया कि उसका एक पुत्र विक्षिप्त है और उसे चैन से बाँध के रखना पड़ता है.मेरे आग्रह पर वे मुझे पिछवाडे में ले गयीं जहाँ उनका ३५ वर्षीय पुत्र चैनो से बंधा हुआ था.हमें देखते ही उसके दिल में आशा की किरण जगी कि शायद उसे इस जेल से मुक्ति मिलने वाली है और वह जोर जोर से चिल्लाने लगा.वह कह रहा था कि उसके कलेजे कि धड़कन तेज है ,उसके दिल का वाल्व ख़राब है जिसे तुंरत बदलाया जाना चाहिए.मैंने पूंछा यह सच कह रहा है क्या ,तब मुझे बताया गया कि इसका इलाज जोधपुर में कराया था पर कोई फायदा नहीं हुआ ,दिनोदिन इसकी विशिप्तता बढ़ी है.मुझे उसकी हरकतें पागल जैसी नहीं लग रही थी.चैन से बाँध के रखने से और घरवालों कि उपेक्षा से वह बहुत आहत लगा. इस व्यक्ति का नाम गणपत है इसके परिवार में पत्नी ,एक लड़की और दो लड़के हैं.पत्नी नरेगा में श्रमिक का काम करके जो वेतन लाती है उससे इस परिवार का गुजारा होता है.परिवार का हाल देख कर आँख में आंसू आना स्वाभाविक ही था.परिवार के लिए कुछ करने का संकल्प मन में उपजता है.ईश्वर सभी को स्वस्थ और प्रसन्न रखे.
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शनिवार, 29 अगस्त 2009
चारणी माता मंदिर
जोधपुर के आसपास सुरम्य प्रकृति के मनमोहक नजारों के अलावा धार्मिक आस्था एवं श्रद्दा के केंद्र ऐसे देवालय हैं जहाँ भक्त अपनी मनोकामना पूर्ण करने आते हैं और साधक अपनी साधना को सफल बनाते हैं.ऐसे ही एक मंदिर में वैष्णव देवी की तरह ही एक गुफा में विराजमान चारणी माता के दर्शन हुए .जोधपुर से २० किलोमीटर दूर फिटकासनी गाँव के पास राजस्थान की पर्वत श्रंखला अरावली के ही एक हिस्से में चारणी माता का मंदिर है .पास में ही एक परिवार रहता है जो इस मंदिर की देखभाल करता है .धार्मिक स्थलों पर जाकर मन को एक अजीब सी शांति और रूह को सकून मिलता है और यही हमारी भागमभाग वाली जिन्दगी को एक नई उर्जा से भर देता है.
बुधवार, 26 अगस्त 2009
जाणे मिल्या रामदेव वाने किया निहाल
२२अगस्त को जोधपुर का मंजर ही कुछ और था .दूर दूर से उमड़ता जन सैलाब बसों ,ट्रेनों में पाँव रखने की जगह नहीं छतों पर भी लोग सवार थे .झुंड के झुंड लोग बाबा की ध्वजा हाथ में लिए बाबा के जयकारे से आकाश को गूंजा रहे थे .जोधपुर से 205 km दूर जैसलमेर मार्ग पर रुनेचा नाम का एक तीर्थस्थान है जहाँ हर वर्ष भादवा सुदी बीज से दसम तक मेला भरता है .इस मेले में राजस्थान के ही नहीं गुजरात ,मध्य प्रदेश ,महाराष्ट्र से भी लोग आते हैं .अनेक लोग पैदल ही यह यात्रा संपन्न करते हैं .जगह जगह श्रद्धालु यात्रियों के लिए भोजन चाय पानी आदि की व्यवस्था करते हैं .शाम होते ही हर थोडी दूर पर बने मंचों पर लोककलाकार भजन एवं नर्त्य प्रस्तुत करते हैं . रामदेव जी का जनम राजपूत कुल में हुआ था .इन्हें भगवान श्री कृष्ण का अवतार माना जाता है .इनके पिता का नाम अजमालजी था .इन्होने ३३ वर्ष की आयु में सन 1459 AD में समाधी ली थी . रामदेवजी सभी का उपकार करते थे इनकी निगाह में कोई छोटा बड़ा नहीं था .मुसलमान उनकी इबादत रामसापीर के रूप में करते हैं .रामदेव जी का बहुत परचा है ,सच्चे दिल से मांगी हुई हर दुआ कबूल होती है . बोलो रामसा पीर की जय .
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रविवार, 23 अगस्त 2009
बिन पानी सब सून
राजस्थान का नाम लेते ही यह द्रश्य आँखों के आगे उभरता है ,कोंसो दूर से पानी के घडे सर पर रखे चेहरा आँचल में मुँह छिपाये कदमताल करती औरते पता नहीं यह प्रकृति का क्रूर मजाक है या सरकार का निकम्मापन की हम एक तरफ तो चाँद पर भारत का झंडा फहराने की तैयारी कर रहे हैं दूसरी तरफ़ मानव की मूलभूत आवश्यकता "शुद्ध पीने योग्य पानी "को सुलभ कराने की कोई ठोस योजना भी हमारे पास नहीं है बहुत से गाँव में तालाबों का पानी जानवरों के पीने योग्य भी नहीं है जिसे मज़बूरी में आदमी को पीना पड़ रहा है आज शहरों में हम मिनरल वाटर की बोतल के इतने आदि हैं की इस तरह के पानी पीने की मज़बूरी हमारी कल्पना से बाहर है तेज धूप,नंगे पाँव ,तपती बालू रेत ,घूँघट से ढका चेहरा ,सर पर पन्द्रह किलो का बोझ और मीलों का सफर -इस जिजीविषा को नमन है पर हमारी नैतिक जिम्मेदारी तो है
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गुरुवार, 20 अगस्त 2009
स्पैनिश बाला का ग्राम्य प्रेम
कुछ दिन पहले एक स्पेनिश बाला विक्की अपने बॉय फ्रेंड के साथ मेरी अतिथि बनी |यूरोप और अमेरिका में "लिव टुगेदर "का प्रचलन है और विवाह जैसी संस्था लुप्त हो रही है |समाज शास्त्री मानव सभ्यता के भविष्य को लेकर आशंकित हैं |विक्की स्पेन के शहर मेड्रिड में बैली डांस का स्कूल चलाती हैं |यह एक मध्य पूर्व की नृत्य शैली है जिसे यूरोप में काफी लोकप्रियता प्राप्त है |ये मेरे यहाँ राजस्थान के ग्रामीण अंचलों में प्रचलित लोक नृत्य देखना चाहती थीं ताकि उसके कुछ स्टेप का समावेश अपने नृत्यों में कर सकें |मेरे सहयोग से प्रसन्न होकर एक सांय उन्होंने बैली डांस की प्रस्तुति मेरे घर पर दी जिसे मैंने विडियो क्लिप बना कर यू ट्यूब पर डाल दिया |राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों से उन्होंने रंग बिरंगे परिधान और गहने खरीदे जिसका उपयोग वे नृत्य प्रस्तुत करते समय करेंगी |
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रविवार, 16 अगस्त 2009
मटका बनाती फ्रांसिसी बाला
जोधपुर से पच्चीस किलोमीटर दूर एक गाँव है सिंघासिनी| इस गाँव में लगभग पचास परिवार रहते हैं जो सभी मुस्लिम कुम्हार हैं |इनका एकमात्र पेशा मटके बनाना है और इनके बनाये मटके राजस्थान ही नही गुजरात और मध्य प्रदेश में भी लोगों को शीतल जल उपलब्ध कराते हैं प्रक्रिया वही हजारों वर्ष पुरानी है काली चिकनी मिटटी में पानी मिला कर आटे की तरह गुंदा जाता है लकड़ी का थोड़ा सा बुरादा मिलाकर चाक पर रख दिया जाता है और फिर चाक घुमा कर हाथों की सफाई से मटके का आकार दे दिया जाता है |
जब मैं अपने फ्रेंच मित्रो को लेकर इस गाँव पंहुचा तब वे हमारी वर्षों पुराने इस हस्तशिल्प को आज भी जीवित देख कर हतप्रभ रह गए और ख़ुद भी हाथ आजमाने का लोभ संवरण नही कर पाए|
वैसे ये मोहतरमा पेरिस के पास लिली शहर में मनोचिकत्सक हैं पर अभी तो मटका बनाना सिखने की विद्यार्थी हैं और गुरु दक्षिणा भी अर्पण कर रही हैं| ये बात अलग है की ये हुनर उनके अपने गाँव में कितना काम आता है इस नायाब गाँव की संस्कृति पर तो एक शोध ग्रन्थ लिखा जा सकता है|
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शनिवार, 15 अगस्त 2009
रामू काका
यह रामू काका का परिवार है मैं अपने विदेशी मित्रों को इनसे मिलने ले जाता हूँ इस चित्र में फ्रांस के डेविड ने रामू काका की पगड़ी पहन रखी है गाँव में आज भी संयुक्त परिवार प्रथा कायम है प्रत्येक व्यक्ति अपना जीवन परिजनों के बीच ही गुजारता है ,जो की पश्चिम में सम्भव नही है वहां वृद्ध अपना संध्या काल ओल्ड एज होम में गुजारते हैं रामू काका अपने मेहमानों का खुले दिल से स्वागत करते हैं अपनी कामचलाऊ अंग्रेजी में मेहमानों को ग्राम्य जीवन की जानकारी देतें हैं और उनकी जिज्ञासा शांत करते हैं
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शुक्रवार, 14 अगस्त 2009
जोधपुर के आसपास का ग्राम्य जीवन
जोधपुर के आसपास का ग्राम्य जीवन बहुत रोचक और प्रेरणाप्रद है आसपास के गाँव जाति बाहुल्य के आधार पर जाने जाते हैं जिनमें राजपूत,जाट ,कुम्हार ,ब्राह्मण,मेघवाल ,बिश्नोई आदि मुख्य है जहाँ एक तरफ़ राजपूत अपनी शूरवीरता के लिए मशहूर हैं वहीँ बिश्नोई प्रसिद्ध पर्यावरण प्रेमी हैं भामाशाह जैसा उदार वणीक है तो संस्कृत के महाकवि माघ हैं राजस्थान के ग्रामीण अंचलों में इनकी कहानियाँ आज भी गा के सुनाई जाती हैं
रामू काका
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Sangasani-Village of potters near Jodhpur
Near Jodhpur there is village Sangasani the entire village is of potterey makers and pots made by them are of best quality.The water in matka(water peacher)remains cool in the entire summer.
For this clay or pond sand mixed with silt is used and intially a dough is made.Then the lump of dough is put on a revolving disc and shape is given by hand.This crude matka is then beaten by stick to expand smoothly and proper shape is given.This raw matka is then put in high temperature by burning wood and it becomes ready to use.This is entirely labour oriented skilled job.The cost of ready matka lies somewhere between 20 to 50 Rs. depending on quality and size.
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Village Cot Surfing
“The Soul of India lives in its villages”, declared Mahatma Gandhi
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