२२अगस्त को जोधपुर का मंजर ही कुछ और था .दूर दूर से उमड़ता जन सैलाब बसों ,ट्रेनों में पाँव रखने की जगह नहीं छतों पर भी लोग सवार थे .झुंड के झुंड लोग बाबा की ध्वजा हाथ में लिए बाबा के जयकारे से आकाश को गूंजा रहे थे .जोधपुर से 205 km दूर जैसलमेर मार्ग पर रुनेचा नाम का एक तीर्थस्थान है जहाँ हर वर्ष भादवा सुदी बीज से दसम तक मेला भरता है .इस मेले में राजस्थान के ही नहीं गुजरात ,मध्य प्रदेश ,महाराष्ट्र से भी लोग आते हैं .अनेक लोग पैदल ही यह यात्रा संपन्न करते हैं .जगह जगह श्रद्धालु यात्रियों के लिए भोजन चाय पानी आदि की व्यवस्था करते हैं .शाम होते ही हर थोडी दूर पर बने मंचों पर लोककलाकार भजन एवं नर्त्य प्रस्तुत करते हैं . रामदेव जी का जनम राजपूत कुल में हुआ था .इन्हें भगवान श्री कृष्ण का अवतार माना जाता है .इनके पिता का नाम अजमालजी था .इन्होने ३३ वर्ष की आयु में सन 1459 AD में समाधी ली थी . रामदेवजी सभी का उपकार करते थे इनकी निगाह में कोई छोटा बड़ा नहीं था .मुसलमान उनकी इबादत रामसापीर के रूप में करते हैं .रामदेव जी का बहुत परचा है ,सच्चे दिल से मांगी हुई हर दुआ कबूल होती है . बोलो रामसा पीर की जय .
जय.. आपने घर की याद दिला दी..
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