जोधपुर से पच्चीस किलोमीटर दूर एक गाँव है सिंघासिनी| इस गाँव में लगभग पचास परिवार रहते हैं जो सभी मुस्लिम कुम्हार हैं |इनका एकमात्र पेशा मटके बनाना है और इनके बनाये मटके राजस्थान ही नही गुजरात और मध्य प्रदेश में भी लोगों को शीतल जल उपलब्ध कराते हैं प्रक्रिया वही हजारों वर्ष पुरानी है काली चिकनी मिटटी में पानी मिला कर आटे की तरह गुंदा जाता है लकड़ी का थोड़ा सा बुरादा मिलाकर चाक पर रख दिया जाता है और फिर चाक घुमा कर हाथों की सफाई से मटके का आकार दे दिया जाता है |
जब मैं अपने फ्रेंच मित्रो को लेकर इस गाँव पंहुचा तब वे हमारी वर्षों पुराने इस हस्तशिल्प को आज भी जीवित देख कर हतप्रभ रह गए और ख़ुद भी हाथ आजमाने का लोभ संवरण नही कर पाए|
वैसे ये मोहतरमा पेरिस के पास लिली शहर में मनोचिकत्सक हैं पर अभी तो मटका बनाना सिखने की विद्यार्थी हैं और गुरु दक्षिणा भी अर्पण कर रही हैं| ये बात अलग है की ये हुनर उनके अपने गाँव में कितना काम आता है इस नायाब गाँव की संस्कृति पर तो एक शोध ग्रन्थ लिखा जा सकता है|
अच्छा लगा ये सब देख कर...
जवाब देंहटाएंनीरज