अहा , ग्राम्य जीवन भी क्या है ...?re simple than village life...

Some true stories about village life

जोधपुर के आसपास ग्राम्य जीवन की झलकियाँ
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सोमवार, 7 सितंबर 2009

पागल ब्राह्मण की दास्तान

जोधपुर के नजदीक के गांवों का भ्रमण करते समय एक गाँव में एक ब्राह्मण परिवार ने मुझे चाय पर आमंत्रित किया.बहुत सज्जन परिवार था.परिवार कि जानकारी लेते समय वृद्धा ने बताया कि उसका एक पुत्र विक्षिप्त है और उसे चैन से बाँध के रखना पड़ता है.मेरे आग्रह पर वे मुझे पिछवाडे में ले गयीं जहाँ उनका ३५ वर्षीय पुत्र चैनो से बंधा हुआ था.हमें देखते ही उसके दिल में आशा की किरण जगी कि शायद उसे इस जेल से मुक्ति मिलने वाली है और वह जोर जोर से चिल्लाने लगा.वह कह रहा था कि उसके कलेजे कि धड़कन तेज है ,उसके दिल का वाल्व ख़राब है जिसे तुंरत बदलाया जाना चाहिए.मैंने पूंछा यह सच कह रहा है क्या ,तब मुझे बताया गया कि इसका इलाज जोधपुर में कराया था पर कोई फायदा नहीं हुआ ,दिनोदिन इसकी विशिप्तता बढ़ी है.मुझे उसकी हरकतें पागल जैसी नहीं लग रही थी.चैन से बाँध के रखने से और घरवालों कि उपेक्षा से वह बहुत आहत लगा. इस व्यक्ति का नाम गणपत है इसके परिवार में पत्नी ,एक लड़की और दो लड़के हैं.पत्नी नरेगा में श्रमिक का काम करके जो वेतन लाती है उससे इस परिवार का गुजारा होता है.परिवार का हाल देख कर आँख में आंसू आना स्वाभाविक ही था.परिवार के लिए कुछ करने का संकल्प मन में उपजता है.ईश्वर सभी को स्वस्थ और प्रसन्न रखे.