जोधपुर के आस पास अनेक गाँव मैं दरी बुनने का काम बड़े पैमाने पर होता है.अधिकांशत: यह काम मेघवाल जाती के लोंगो द्वारा किया जाता है.यह दरी इंडियन कारपेट के रूप मैं निर्यात की जाती है.मैं इस उद्योग से बहुत प्रभावित हुआ .यहाँ तक की कें विकिपीडिया पर एक वेब पेज भी बना डाला.
http://en.wikipedia.org/wiki/Dhurrie
यह ग्रामीण छेत्रों मैं रोजगार का अच्छा साधन है यह वो कुटीर उद्योग है जो शायद गांधीजी के सपनों का भारत बनाता है.अगर आप कभी जोधपुर की तरफ घूमने आएं तो यादगार के लिए एक दरी खरीदना मत भूलियेगा.
वाकई सालावास दरी उद्योग में अनूठी कला है.आपके प्रयासों को सराहना और शुभकामनाए !
जवाब देंहटाएंतिंवरी से आगे एक मेघवाल की ढाणी में दरी बनाते मैंने भी बहुत साल पहले देखा था | ये लोग वाकई बहुत बढ़िया शिल्पकार है |
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार दरी बनाते है ये लोग.. छोटी छोटी बाते अच्छी लगी..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा काम है कोई मुझे सैम्पल का फोटो भेजै ई मेल. Manglaram121@live.com
जवाब देंहटाएं