जोधपुर के नजदीक ही कुछ गाँव में शिल्पकार पत्थर की मुर्तियाँ घड़ने का काम करते हैं.इसकी मांग बड़े शहरों के अलावा विदेशों में भी है.जोधपुर में गुलाबी रंग का पत्थर बहुतायत से पाया जाता है जिसे छित्तर कहते हैं,जोधपुर का राजमहल जिसका नाम उम्मेद भवन पैलेस है वह भी इसी पत्थर से बना हुआ है.आने वाले समय में इसकी पहचान बन सकती है और यह अकाल की विभीषिका झेल रहे मारवाड़ के श्रमिकों के लिए रोजगार का वैकल्पिक साधन बन सकता है,
इसके अलावा छतरियां,बुर्ज ,जाली.नक्काशीदार झरोखे बनाने के लिए घोटारु नामक पत्थर काम में लाया जाता है.इस पत्थर पर नक्काशी करना आसान होता है.जैसलमेर के पीले पत्थर पर कि गई नक्काशी बेहद खूबसरत लगती है .जैसलमेर में बनी पटवों कि हवेली विश्व प्रसिद्ध है.
बहुत ही सुन्दर जानकारी ......सही कहा अच्छा विकल्प बन सकता है !
जवाब देंहटाएंगोयल जी दुनिया में शिल्पकारों के साथ क्या घटा हैं वो आप जानते हैं. इसकी एक बानगी देखिये
जवाब देंहटाएंशिल्पकारों को कम मत समझो
सारी दुनिया को रचाते बसाते हैं
ये कैसा पुरस्कार मिलता हैं मेरे देश में
ताज महल बनाने पे हाथ काटे जाते हैं.
Kai rang hain aapke blog me.Shubkamnayen.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
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