अहा , ग्राम्य जीवन भी क्या है ...?re simple than village life...

Some true stories about village life

जोधपुर के आसपास ग्राम्य जीवन की झलकियाँ

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2009

रशीदा में एक दिन गुजार कर तो देखिये



एक  दिन गाँव के इस मकान में गुजार कर तो देखिये.बस जरा सी मुश्किलें हैं मसलन बिजली नहीं है यानि फ्रीज़ ,टी.वी.पंखा कुछ नहीं है शाम के बाद एक टिमटिमाता दिया है,खाने को बाजरे का सोगरा और कढी है ,पानी एक किलोमीटर दूर ट्यूब वेल से लाना पड़ेगा और शौच के लिए अल सुबह जंगल में जाना पड़ेगा पुरुष खुले में नहाएँगे महिलाओं के लिए दो दीवार खडी कर आड़ बनायीं गई है.शुद्ध हवा है ,ढूध दही छाछ है ,आत्मीयता है,अपनापन है.और आप जुड़ जाते हैं भारत कि उस सत्तर प्रतिशत जनता से जो इसी तरह कि सुविधा रहित जीवन शेली का अभ्यस्त है.यह रशीदा गाँव के एक मकान का चित्र है.जीवन कितना सरल है और हमने  उसे कितना कठिन बना रखा है. 

8 टिप्‍पणियां:

  1. गाँव क ताज़ी हवा, खूबसूरत सुबह का कुछ और ही मज़ा है ......... फोटो भी खूबसूरत है ...........बहुत खूब लिखा है ....

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  2. बिल्कुल सही कहा आपने जीवन कितना सरल है पर कठिन तो हमने बना दिया है ......बिल्कुल सही .......जहाँ सिर्फ और सिर्फ प्रकृति है वहा एक दिन तो अवश्य गुजारनी चाहिये!

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  3. असली सुख वही है .. लोग नकली सुखों के पीछे दौड रहे हैं .. लेकिन गांव की स्थिति पर थोडा ध्‍यान तो दिया ही जाना चाहिए .. वहां अनाज की व्‍यवस्‍था भी हो जाए .. तो शहरों का रूख क्‍यूं करेंगे लोग ?

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  4. जीवन कितना सरल है और हमने उसे कितना कठिन बना रखा है. सत्यवचन.

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  5. माना कि ग्राम्य जीवन का एक अपना ही अलग आनन्द है....लेकिन हम लोग जो कि इतने अधिक सुविधाभोगी हो चुके हैं,क्या ऎसे परिवेश में रहने की कल्पना भी कर सकते हैं?

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  6. S B Tamare20 अक्तूबर 2009 को 3:22 am
    गाँव में मिलने वाली ताज़ी हवा पानी के नाम पर नर्क सा जीवन बसर करना मजबूरी कही जायेगी जब की विकसित देशो के गाँव भी भारत के महा नगरो में प्राप्त सुविधा में बेहतर है / आभाव में सहमती या तो सन्यासी की शोभा है या फिर गृहस्त की विफलता ही गिनी जानी चाहिए / रशीदा गाँव की दुर्भाग्य पूर्ण जो तस्वीर आपने शब्दों में उकेरी है वो ६३ वर्ष के बुढे भारत का विलाप अपने विफ्ल्ताओ को छुपाने का प्रयास भर ही लगता है /

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  7. बचपन की यादें, गांव की बातें, दिल को सुकून देती है।

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