अहा , ग्राम्य जीवन भी क्या है ...?re simple than village life...
Some true stories about village life
जोधपुर के आसपास ग्राम्य जीवन की झलकियाँ
जोधपुर के आसपास ग्राम्य जीवन की झलकियाँ
मंगलवार, 27 अक्टूबर 2009
पुष्कर का पवित्र सरोवर
पुष्कर का पवित्र सरोवर अब इस हाल में है.पुष्कर का विश्व प्रसिद्ध पशु मेला शुरू हो चुका है और कार्तिक एकादशी से लेकर पूनम तक पवित्र सरोवर में डुबकी लगा कर पुण्य कमाने के लिए इन पांच दिनों में लगभग पांच लाख लोग पुष्कर पहुंचेंगे.लगभग ३५ हजार विदेशी भी राजस्थान की ग्रामीण संस्कृति की झलक देखने के लिए यहाँ पहुचेंगे.लेकिन इस महान पवित्र सरोवर की दुर्दशा आप देख रहें हैं.जन समूह को हिन्दू धर्म के आस्था के प्रतीक इस सरोवर में डुबकी लगाने के बजाय एक कृत्रिम टैंक में कृत्रिम रूप से भरे पानी में डुबकी लगा कर ही संतोष करना पड़ेगा.है ना अफ़सोस की बात.सरकार को तो इससे लेना देना ही क्या है.समय पर इसका desilting कराया होता ,गहरा करवाया होता ,घाटों पर बनी अवैध होटलों को हटाया होता ,आस पास की पहाडियों से वर्षा के पानी को सरोवर तक पहुँचने के मार्ग में हुए अतिक्रमण को हटाया होता ,तो शायद यह नौबत नहीं आती.
शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2009
कालबेलिया राजस्थान का एक प्रसिद्ध नृत्य
कालबेलिया राजस्थान कि एक प्रसिद्ध नृत्य शेली है.यह सपेरा जाति का नृत्य है.इसमें गजब का लोच और गति है जो दर्शक को सम्मोहित कर देता है.यह नृत्य दो महिलाओं द्वारा किया जाता है.ये बहुत घेरदार काला घाघरा पहनती हैं जिसपर कसीदा होता है कांच लगे होते हैं और इसी तरह का ओढ़ना और कांचली-कुर्ती होते हैं.राजस्थानी लोक गीतों पर ये फिरकनी कि तरह नाचती हैं तो देखने वाले के मुंह से वाह निकले बिना नहीं रहती.इस नृत्य की मशहूर कलाकार गुलाबो कई बार विदेशों में इस नृत्य को प्रस्तुत करके वाहवाही लूट चुकी हैं.संगीत के लिए बीन और डफ बजाया जाता है और लोक कलाकार और अपनी सुरीली आवाज में लोक गीतों का जादू बिखेरतें हैं.जब भी आप राजस्थान आयें इस नृत्य को देखना न भूलें.
मंगलवार, 20 अक्टूबर 2009
रशीदा में एक दिन गुजार कर तो देखिये
एक दिन गाँव के इस मकान में गुजार कर तो देखिये.बस जरा सी मुश्किलें हैं मसलन बिजली नहीं है यानि फ्रीज़ ,टी.वी.पंखा कुछ नहीं है शाम के बाद एक टिमटिमाता दिया है,खाने को बाजरे का सोगरा और कढी है ,पानी एक किलोमीटर दूर ट्यूब वेल से लाना पड़ेगा और शौच के लिए अल सुबह जंगल में जाना पड़ेगा पुरुष खुले में नहाएँगे महिलाओं के लिए दो दीवार खडी कर आड़ बनायीं गई है.शुद्ध हवा है ,ढूध दही छाछ है ,आत्मीयता है,अपनापन है.और आप जुड़ जाते हैं भारत कि उस सत्तर प्रतिशत जनता से जो इसी तरह कि सुविधा रहित जीवन शेली का अभ्यस्त है.यह रशीदा गाँव के एक मकान का चित्र है.जीवन कितना सरल है और हमने उसे कितना कठिन बना रखा है.
लेबल:
ग्रामीण जीवन,
जोधपुर,
रशीदा,
राजस्थान
शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2009
जोधपुर के आस पास वन्य जीव
जोधपुर के आसपास के छेत्रों में अनेक वन्य प्राणी स्वछंद विचरण करते हुए देखे जा सकते हैं.इनमे प्रमुख हैं हिरण,ब्लैक बक ,नील गाय,मोर,लोमडी ,खरगोश आदि.सुबह शाम हिरणों के झुंड के झुंड कुलाँचे भरते हुए नजर आयेंगे.इसी इलाके में सलमान खान शिकार प्रकरण हुआ है.यहाँ के लोग वन्य जीवों से छेड़ छाड़ पसंद नहीं करते हैं .बस दूर से निहारिए कैमरे में कैद कीजिये और आगे बढ़ जाइये किसी और दिलकश नज़ारे की तलाश में.मेरा व्यक्तिगत अनुभव है की अगर आप वास्तव में वन्य जीवों से प्रेम करते हैं तो आप को बहुत कुछ देखने को मिलेगा पर अगर आप वन्य जीवों के प्रति मन में हिंसा का भाव रखते हैं तो आपको निराश ही होना पड़ेगा.
रविवार, 11 अक्टूबर 2009
बिन पानी सब सून
राजस्थान के अधिकांश हिस्सों में बारिश नहीं होने से इस बार अकाल का सामना करना पड़ेगा.इसे दोहरा अकाल भी कहते हैं क्योंकि किसान कर्ज लेकर बुवाई कर चुके हैं.पीने का पानी सबसे बड़ी समस्या है ,तालाब सूखे पड़े हैं आदमी और मवेशी पानी कि तलाश में भटक रहे हैं (ऊपर का चित्र आशु मित्तल द्वारा ).राज्य सरकार कि नींद उड़ चुकी है और पेयजल योजनाओं पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है.वैसे भी इस सरकार को सूखे का काफी अनुभव है.केंद्र भी दया के नाम पर मदद तो करेगा ही.कुल मिला कर अगर आप जी नहीं सकते तो कम से कम आपको मरने भी नहीं दिया जायेगा.कोई बात नहीं हमारे मारवाड़ कि तो खासियत है पानी उन्डो है तो मिनक भी उन्डो है यानि चूँकि यहाँ पानी गहराई में मिलता है तो आदमी में भी सब्र का माद्दा ज्यादा है.
लेबल:
अकाल,
आशु मित्तल किसान,
कर्ज,
राजस्थान
शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2009
मारवाड़ की मशहूर और नायाब जूतियाँ
राजस्थान का मारवाड़ प्रदेश जोधपुर जैसलमेर पाली जालोर सिरोही बाड़मेर जिलों को मिला कर बना है.इस इलाके में ऊँठ बहुतायत से पाए जाते हैं इसलिए ऊँठ के चमड़े से कुटीर उद्योग पनपे और आज जोधपुर कि बनी जूतियों कि एक अलग पहचान है .मुलायम चमड़े पर खूबसूरत कसीदा जूतियों कि शान में चार चाँद लगा देता है.अस्सी रूपये से लेकर दो सौ रूपये तक में आप एक खूबसूरत जोड़ा खरीद सकते हैं.काकेलाव गाँव के चौराहे पर कोने में नीम के पेड़ के नीचे बैठा शंकरजी मोची कई पीढी से यही काम कर रहा है.दाल रोटी मिल जाती है.लेकिन भौतिक वाद के इस युग में दाल रोटी से कौन खुश है.वो चाहता है कि उसके बच्चे पढ़ लिख कर कोई और काम धंधा करें जिसकी समाज में इज्जत हो .
बुधवार, 7 अक्टूबर 2009
सुरम्य व मनोरम धार्मिक स्थल - बूढा पुष्कर
गुरुवार, 1 अक्टूबर 2009
92 वर्षीय विधवा बग्तु देवी को मिली पेंशन
जोधपुर संभाग के सिरोही जिले में कालिंद्री के जरा आगे चारण बाहुल्य गाँव है पेशवा .यहाँ की ९२ वर्षीय विधवा बग्तु बाई पिछले ६५ वर्षों से अपने पेंशन के अधिकार के लिए लड़ रही थीं.इनके पति राजकीय सेवा में अध्यापक थे और १५ वर्ष तक निष्टा और लगन से बच्चों को पढाया.उसके बाद टी.बी.जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हो अल्पायु में चल बसे.बग्तु बाई पर परिवार का बोझ आन गिरा परन्तु एक आस थी पति राज्य कर्मचारी थे पेंशन तो मिलेगी ही.स्कूल से लेकर जिला शिक्षा अधिकारी तक अनेक बार हाथ फेलाए ,उच्चतम अधिकारीयों तक भी चिट्ठी पत्री लिखी पर कुछ हासिल नहीं हुआ.मानवाधिकार आयोग में प्रार्थना पत्र दिया ,नोटिस प्रमुख शासन सचिव वित्त विभाग Shri C.K.Mathew (चित्र बाएं ) को मिला परन्तु एक संवेदनशील अधिकारी होने के नाते उन्होंने इसे गंभीरता से लिया.सभी सम्बंधित अधिकारीयों की जयपुर सचिवालय में मीटिंग रखी गयी. ज्ञात हुआ की बग्तु देवी के पति द्वारा प्रदत्त सेवाओं का अभिलेख नहीं है पुनः शिक्षा विभाग के अधिकारीयों को निर्देश दिए की रिकोर्ड की गहराई से छानबीन की जाय.
अंततः कुछ रिकॉर्ड मिला और कुछ Mathew साहब ने सहयोगी अधिकारीयों की सलाह पर अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए बग्तु देवी के पति के सेवा काल को पेंशन योग्य मानते हुए पारिवारिक पेंशन दिए जाने का निर्णय लिया.सम्बंधित अधिकारीयों को स्वयं बग्तु देवी के गाँव जाकर पेंशन भुगतान के आदेश दिए.जिससे किसी बिचोलिये के हाथों राशी का दुरूपयोग न हो.जब करीब चार लाख की राशी का चेक बग्तु देवी के हाथों में दिया गया तो उनकी आँखों में ख़ुशी के आंसू थे.
अंततः कुछ रिकॉर्ड मिला और कुछ Mathew साहब ने सहयोगी अधिकारीयों की सलाह पर अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए बग्तु देवी के पति के सेवा काल को पेंशन योग्य मानते हुए पारिवारिक पेंशन दिए जाने का निर्णय लिया.सम्बंधित अधिकारीयों को स्वयं बग्तु देवी के गाँव जाकर पेंशन भुगतान के आदेश दिए.जिससे किसी बिचोलिये के हाथों राशी का दुरूपयोग न हो.जब करीब चार लाख की राशी का चेक बग्तु देवी के हाथों में दिया गया तो उनकी आँखों में ख़ुशी के आंसू थे.
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