अहा , ग्राम्य जीवन भी क्या है ...?re simple than village life...
Some true stories about village life
जोधपुर के आसपास ग्राम्य जीवन की झलकियाँ
जोधपुर के आसपास ग्राम्य जीवन की झलकियाँ
शनिवार, 29 अगस्त 2009
चारणी माता मंदिर
जोधपुर के आसपास सुरम्य प्रकृति के मनमोहक नजारों के अलावा धार्मिक आस्था एवं श्रद्दा के केंद्र ऐसे देवालय हैं जहाँ भक्त अपनी मनोकामना पूर्ण करने आते हैं और साधक अपनी साधना को सफल बनाते हैं.ऐसे ही एक मंदिर में वैष्णव देवी की तरह ही एक गुफा में विराजमान चारणी माता के दर्शन हुए .जोधपुर से २० किलोमीटर दूर फिटकासनी गाँव के पास राजस्थान की पर्वत श्रंखला अरावली के ही एक हिस्से में चारणी माता का मंदिर है .पास में ही एक परिवार रहता है जो इस मंदिर की देखभाल करता है .धार्मिक स्थलों पर जाकर मन को एक अजीब सी शांति और रूह को सकून मिलता है और यही हमारी भागमभाग वाली जिन्दगी को एक नई उर्जा से भर देता है.
बुधवार, 26 अगस्त 2009
जाणे मिल्या रामदेव वाने किया निहाल
२२अगस्त को जोधपुर का मंजर ही कुछ और था .दूर दूर से उमड़ता जन सैलाब बसों ,ट्रेनों में पाँव रखने की जगह नहीं छतों पर भी लोग सवार थे .झुंड के झुंड लोग बाबा की ध्वजा हाथ में लिए बाबा के जयकारे से आकाश को गूंजा रहे थे .जोधपुर से 205 km दूर जैसलमेर मार्ग पर रुनेचा नाम का एक तीर्थस्थान है जहाँ हर वर्ष भादवा सुदी बीज से दसम तक मेला भरता है .इस मेले में राजस्थान के ही नहीं गुजरात ,मध्य प्रदेश ,महाराष्ट्र से भी लोग आते हैं .अनेक लोग पैदल ही यह यात्रा संपन्न करते हैं .जगह जगह श्रद्धालु यात्रियों के लिए भोजन चाय पानी आदि की व्यवस्था करते हैं .शाम होते ही हर थोडी दूर पर बने मंचों पर लोककलाकार भजन एवं नर्त्य प्रस्तुत करते हैं . रामदेव जी का जनम राजपूत कुल में हुआ था .इन्हें भगवान श्री कृष्ण का अवतार माना जाता है .इनके पिता का नाम अजमालजी था .इन्होने ३३ वर्ष की आयु में सन 1459 AD में समाधी ली थी . रामदेवजी सभी का उपकार करते थे इनकी निगाह में कोई छोटा बड़ा नहीं था .मुसलमान उनकी इबादत रामसापीर के रूप में करते हैं .रामदेव जी का बहुत परचा है ,सच्चे दिल से मांगी हुई हर दुआ कबूल होती है . बोलो रामसा पीर की जय .
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बाबा रामदेव,
रामदेवरा,
रामसापीर,
रुणेचा,
हेलो
रविवार, 23 अगस्त 2009
बिन पानी सब सून
राजस्थान का नाम लेते ही यह द्रश्य आँखों के आगे उभरता है ,कोंसो दूर से पानी के घडे सर पर रखे चेहरा आँचल में मुँह छिपाये कदमताल करती औरते पता नहीं यह प्रकृति का क्रूर मजाक है या सरकार का निकम्मापन की हम एक तरफ तो चाँद पर भारत का झंडा फहराने की तैयारी कर रहे हैं दूसरी तरफ़ मानव की मूलभूत आवश्यकता "शुद्ध पीने योग्य पानी "को सुलभ कराने की कोई ठोस योजना भी हमारे पास नहीं है बहुत से गाँव में तालाबों का पानी जानवरों के पीने योग्य भी नहीं है जिसे मज़बूरी में आदमी को पीना पड़ रहा है आज शहरों में हम मिनरल वाटर की बोतल के इतने आदि हैं की इस तरह के पानी पीने की मज़बूरी हमारी कल्पना से बाहर है तेज धूप,नंगे पाँव ,तपती बालू रेत ,घूँघट से ढका चेहरा ,सर पर पन्द्रह किलो का बोझ और मीलों का सफर -इस जिजीविषा को नमन है पर हमारी नैतिक जिम्मेदारी तो है
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गुरुवार, 20 अगस्त 2009
स्पैनिश बाला का ग्राम्य प्रेम
कुछ दिन पहले एक स्पेनिश बाला विक्की अपने बॉय फ्रेंड के साथ मेरी अतिथि बनी |यूरोप और अमेरिका में "लिव टुगेदर "का प्रचलन है और विवाह जैसी संस्था लुप्त हो रही है |समाज शास्त्री मानव सभ्यता के भविष्य को लेकर आशंकित हैं |विक्की स्पेन के शहर मेड्रिड में बैली डांस का स्कूल चलाती हैं |यह एक मध्य पूर्व की नृत्य शैली है जिसे यूरोप में काफी लोकप्रियता प्राप्त है |ये मेरे यहाँ राजस्थान के ग्रामीण अंचलों में प्रचलित लोक नृत्य देखना चाहती थीं ताकि उसके कुछ स्टेप का समावेश अपने नृत्यों में कर सकें |मेरे सहयोग से प्रसन्न होकर एक सांय उन्होंने बैली डांस की प्रस्तुति मेरे घर पर दी जिसे मैंने विडियो क्लिप बना कर यू ट्यूब पर डाल दिया |राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों से उन्होंने रंग बिरंगे परिधान और गहने खरीदे जिसका उपयोग वे नृत्य प्रस्तुत करते समय करेंगी |
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रविवार, 16 अगस्त 2009
मटका बनाती फ्रांसिसी बाला
जोधपुर से पच्चीस किलोमीटर दूर एक गाँव है सिंघासिनी| इस गाँव में लगभग पचास परिवार रहते हैं जो सभी मुस्लिम कुम्हार हैं |इनका एकमात्र पेशा मटके बनाना है और इनके बनाये मटके राजस्थान ही नही गुजरात और मध्य प्रदेश में भी लोगों को शीतल जल उपलब्ध कराते हैं प्रक्रिया वही हजारों वर्ष पुरानी है काली चिकनी मिटटी में पानी मिला कर आटे की तरह गुंदा जाता है लकड़ी का थोड़ा सा बुरादा मिलाकर चाक पर रख दिया जाता है और फिर चाक घुमा कर हाथों की सफाई से मटके का आकार दे दिया जाता है |
जब मैं अपने फ्रेंच मित्रो को लेकर इस गाँव पंहुचा तब वे हमारी वर्षों पुराने इस हस्तशिल्प को आज भी जीवित देख कर हतप्रभ रह गए और ख़ुद भी हाथ आजमाने का लोभ संवरण नही कर पाए|
वैसे ये मोहतरमा पेरिस के पास लिली शहर में मनोचिकत्सक हैं पर अभी तो मटका बनाना सिखने की विद्यार्थी हैं और गुरु दक्षिणा भी अर्पण कर रही हैं| ये बात अलग है की ये हुनर उनके अपने गाँव में कितना काम आता है इस नायाब गाँव की संस्कृति पर तो एक शोध ग्रन्थ लिखा जा सकता है|
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शनिवार, 15 अगस्त 2009
रामू काका
यह रामू काका का परिवार है मैं अपने विदेशी मित्रों को इनसे मिलने ले जाता हूँ इस चित्र में फ्रांस के डेविड ने रामू काका की पगड़ी पहन रखी है गाँव में आज भी संयुक्त परिवार प्रथा कायम है प्रत्येक व्यक्ति अपना जीवन परिजनों के बीच ही गुजारता है ,जो की पश्चिम में सम्भव नही है वहां वृद्ध अपना संध्या काल ओल्ड एज होम में गुजारते हैं रामू काका अपने मेहमानों का खुले दिल से स्वागत करते हैं अपनी कामचलाऊ अंग्रेजी में मेहमानों को ग्राम्य जीवन की जानकारी देतें हैं और उनकी जिज्ञासा शांत करते हैं
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शुक्रवार, 14 अगस्त 2009
जोधपुर के आसपास का ग्राम्य जीवन
जोधपुर के आसपास का ग्राम्य जीवन बहुत रोचक और प्रेरणाप्रद है आसपास के गाँव जाति बाहुल्य के आधार पर जाने जाते हैं जिनमें राजपूत,जाट ,कुम्हार ,ब्राह्मण,मेघवाल ,बिश्नोई आदि मुख्य है जहाँ एक तरफ़ राजपूत अपनी शूरवीरता के लिए मशहूर हैं वहीँ बिश्नोई प्रसिद्ध पर्यावरण प्रेमी हैं भामाशाह जैसा उदार वणीक है तो संस्कृत के महाकवि माघ हैं राजस्थान के ग्रामीण अंचलों में इनकी कहानियाँ आज भी गा के सुनाई जाती हैं
रामू काका
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Sangasani-Village of potters near Jodhpur
Near Jodhpur there is village Sangasani the entire village is of potterey makers and pots made by them are of best quality.The water in matka(water peacher)remains cool in the entire summer.
For this clay or pond sand mixed with silt is used and intially a dough is made.Then the lump of dough is put on a revolving disc and shape is given by hand.This crude matka is then beaten by stick to expand smoothly and proper shape is given.This raw matka is then put in high temperature by burning wood and it becomes ready to use.This is entirely labour oriented skilled job.The cost of ready matka lies somewhere between 20 to 50 Rs. depending on quality and size.
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Village Cot Surfing
“The Soul of India lives in its villages”, declared Mahatma Gandhi
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